फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ समाज के हिसाब से उस बदलते भारत का दस्तावेज सरीखी है जिसमें एक ही शहर के मोहल्ले बंट चुके हैं। रंग बंट चुके हैं और इंसान, इंसान न होकर धर्मों में बंट चुके हैं। कहानी किसी बहुत ही साधारण फिल्म की तरह शुरू होती है। भजन कुमार का परिचय उन्हीं से कराते हुए फिल्म पंडिताई में चलने वाली प्रतिद्वंद्विता तक होती हुई वहां अपने असली मोड़ पर आती है जहां कहानी के नायक का अतीत घर पर आई एक चिट्ठी खोलती है। परिवार का मुखिया तीर्थयात्रा पर है, मोबाइल बंद करके। यहां बलरामपुर में सब कुछ उलट पुलट हो जाता है। धर्म की व्याख्या वस्त्रों और खानपान के तरीके से होती दिखती है और फिर...! फिर फिल्म का उच्चतम बिंदु आता है पिता-पुत्र के आपसी विश्वास के रूप में।
फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ समाज के हिसाब से उस बदलते भारत का दस्तावेज सरीखी है जिसमें एक ही शहर के मोहल्ले बंट चुके हैं। रंग बंट चुके हैं और इंसान, इंसान न होकर धर्मों में बंट चुके हैं। कहानी किसी बहुत ही साधारण फिल्म की तरह शुरू होती है। भजन कुमार का परिचय उन्हीं से कराते हुए फिल्म पंडिताई में चलने वाली प्रतिद्वंद्विता तक होती हुई वहां अपने असली मोड़ पर आती है जहां कहानी के नायक का अतीत घर पर आई एक चिट्ठी खोलती है। परिवार का मुखिया तीर्थयात्रा पर है, मोबाइल बंद करके। यहां बलरामपुर में सब कुछ उलट पुलट हो जाता है। धर्म की व्याख्या वस्त्रों और खानपान के तरीके से होती दिखती है और फिर...! फिर फिल्म का उच्चतम बिंदु आता है पिता-पुत्र के आपसी विश्वास के रूप में।
Leave a Reply