छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सुरक्षा बलों पर हुए नक्सली हमले का मास्टरमाइंड माड़वी हिडमा इस समय चर्चा में है। बीजापुर और सुकमा जिले की सीमा पर स्थित तर्रेम के टेकलागुड़ा गांव में 3 अप्रैल को सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच हुए संघर्ष में माड़वी हिडमा ही माओवादियों को लीड कर रहा था। यह इलाका नक्सलियों का गढ़ है और यहां माओवादियों की बटालियन नंबर वन का दबदबा है। इस बटालियन का तकनीक कौशल इसे दूसरी नक्सल बटालियनों से अलग करता है।
हिडमा माओवादी संगठन में आया कैसे? इस सवाल पर बदरना कहते हैं, '16 साल की उम्र में उसके गांव पूर्वती में माओवादियों की ग्राम राज्य कमेटी ने उसे चुना। भर्ती की प्रक्रिया मैंने ही पूरी की थी। उसके साथ कई और बच्चे भी थे। उन्हीं में आज का मशहूर नक्सली पापाराव भी था। बच्चों के लिए माओवादियों में 'बालल संगम' नाम से एक संगठन होता है। हिडमा की शुरुआत उसी से हुई।'
बदरना बताते हैं, 'दुबली पतली, लेकिन चुस्त कद काठी वाला हिडमा बहुत तेज-तर्रार था और चीजों को बहुत तेजी से सीखता था।'
'उसकी इसी काबिलियत की वजह से उसे बच्चों की विंग 'बालल संगम' का अध्यक्ष बनाया गया। गोंड समाज से आने वाले हिडमा की शादी माओवादी संगठन में आने से पहले हो चुकी थी। उसका असली नाम मुझे ठीक से याद नहीं, लेकिन हिडमा नाम उसे संगठन ने दिया था।' बस्तर में माड़वी हिडमा कई नामों से जाना जाता है। हिडमा उर्फ संतोष ऊर्फ इंदमूल ऊर्फ पोड़ियाम भीमा उर्फ मनीष। तो आखिर उसका असली नाम क्या है? इस पर बदरना कहते हैं कि रणनीति के तहत उसका असली नाम छिपाया जाता है।
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