फिल्म ‘ओएमजी 2’ बदलते समय की सच्ची पुकार है। जो सत्य है वही सुंदर है जो सुंदर है वही शिव है। सत्यम् शिवम् सुंदरम् की अवधारणा भी यही है। बहुत हल्ला मचता है जब हम नकली समाज की नकली कहानियों पर बनी नकली फिल्में देखते हैं जिनमें दर्शकों को सोचने की दिशा बदलने जैसी कोई बात नहीं होती है और जब बात होती है तो ‘ओएमजी 2’ जैसी फिल्में बनती हैं जिनकी रिलीज के लिए इनके निर्माताओं को पापड़, पूड़ी, पराठे सब बेलने पड़ते हैं। फिल्म को ‘केवल वयस्कों के लिए’ जैसा प्रमाण पत्र देने की जरूरत भी कतई नहीं है। फिल्म सभी किशोरों को देखनी चाहिए और हो सके तो तमाम स्कूलों को अपने आठवीं कक्षा के बाद के सारे बच्चों को ये फिल्म समूह में ले जाकर दिखानी चाहिए।
यौन शिक्षा की जरूरत समझाती फिल्म
एक स्कूल के बहाने ही सही लेकिन सच्ची सामाजिक उद्विगनताओं की बात करती है फिल्म ‘ओएमजी 2’। एक किशोरवय का बच्चा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारियों के बीच अपनी पसंदीदा छात्रा से अलग कर दिया जाता है। छात्रा के दोस्त इस बच्चे का मजाक उड़ाते हैं उसके लिंग के आकार को लेकर उसके मन में शंकाओं का निर्माण कर देते हैं और बच्चा अब पूछे भी तो किससे कि सामान्य लिंग का आकार प्रकार कैसा होता है? वह नीम हकीमों, जड़ी बूटी बेचने वाले बाबाओं के पास भटकता है और फिर एक मेडिकल स्टोर से नकली वियाग्रा खाकर बीमार हो जाता है। स्कूल उसकी इस हरकत को सामाजिक अपराध की संज्ञा देता है। उसके बालमन को समझने की कोशिश कोई नहीं करता। लेकिन, शिव की कृपा होती है। बच्चे का पिता स्कूल के संचालकों, नीम हकीमों, जड़ी बूटी विक्रेताओं और मेडिकल स्टोर संचालक के साथ साथ अपने ऊपर भी मुकदमा कर देता है। असली फिल्म यहां से शुरू होती है।
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