मणिपुर पिछले कुछ दिनों की हिंसा के बाद उबरने की कोशिश कर रहा है. स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं है. लेकिन मणिपुर के बाहर के लोगों के लिए इस हिंसा की वजहों को समझना भी आसान नहीं है.
इसके लिए पहले समझना पड़ेगा कि मणिपुर की सामाजिक स्थिति क्या है. मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख है. यहां तीन मुख्य समुदाय हैं..मैतई, नगा और कुकी. मैतई ज़्यादातर हिंदू हैं. मैतई मुसलमान भी हैं. जनसंख्या में भी मैतई ज़्यादा हैं.
नगा और कुकी ज़्यादातर ईसाई हैं. नगा और कुकी को जनजाति में आते हैं.
कोर्ट के एक ऑब्ज़र्वेशन से उठा विवाद
हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा कि 'वो मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर विचार करे. 10 सालों से ये डिमांड पेंडिंग है..इस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं आता है..तो आप अगले 4 हफ्ते में बताएं.'
कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओपिनियन भी मांगी थी. कोर्ट ने अभी मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का आदेश नहीं दिया है, सिर्फ़ एक ऑब्ज़र्वेशन दी है. लेकिन ये बात सामने आ रही है कि कोर्ट के इस ऑब्ज़र्वेशन को ग़लत समझा गया.
अगले दिन मणिपुर विधानसभा की हिल एरियाज़ कमेटी ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया और कहा कि कोर्ट के इस आदेश से वे दुखी हैं.
उनका कहना था कि कमेटी एक संवैधानिक संस्था है और उनसे भी सलाह मशविरा नहीं लिया गया. आपको बता देते हैं कि पहाड़ी इलाके से चुने गए सभी विधायक इस कमेटी के सदस्य होते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी से हों. फ़िलहाल बीजेपी के विधायक डी गेंगमे इसके चेयरमैन हैं.
फिर 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने एक रैली आयोजित की. 'आदिवासी एकजुटता रैली...राजधानी इंफ़ाल से क़रीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर ज़िले के तोरबंग इलाक़े में हुई. इसमें हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि इसी दौरान जनजातीय समूहों और दूसरे समूहों के बीच झड़पें शुरू हो गईं. फिर ये हिंसा दूसरी जगहों पर भी फैली.
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