एक रूढ़िवादी धर्मनिरपेक्ष के रूप में मैं पीएम नरेंद्र मोदी के यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के आह्वान का स्वागत करता हूं ताकि मुस्लिमों और ईसाइयों समेत सभी धार्मिक समूहों के पर्सनल लॉ को नियंत्रित किया जा सके। 1950 के दशक में हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu personal law) में सुधार किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को उसी समय सभी दूसरे धर्मों के पर्सनल लॉ में भी सुधार करना चाहिए था ताकि देश को एक समान नागरिक संहिता (UCC) मिल सके। दुख की बात है कि उन्होंने मौका गंवा दिया। अब समय आ गया है कि हिंदुस्तान पर्सनल लॉ में धार्मिक मतभेदों को ख़त्म कर दे। लेकिन, यह काम धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए, बहुसंख्यकवादी नहीं।
इसका मतलब कि सिर्फ मुस्लिम और ईसाई पर्सनल लॉ में ही नहीं, बल्कि हिंदू क़ानूनों में भी सुधार होगा। उदाहरण के लिए, वर्तमान में हिंदुओं को हिंदू अविभाजित परिवार के रूप में एक अलग क़ानूनी और टैक्स एन्टिटी बनाने का अधिकार है। मुस्लिमों या ईसाइयों में यह सुविधा नहीं। इस अधिकार का इस्तेमाल होता है हज़ारों करोड़ रुपये के टैक्स बचाने और महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार देने से बचने में। यूनिफॉर्म सिविल कोड के ज़रिये इसमें ज़रूर सुधार किया जाना चाहिए।
अधिकांश धर्मनिरपेक्ष दलों ने ऐतिहासिक रूप से UCC से अपने हाथ खींच लिए हैं। वहीं, एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी, बीजेपी पैरवी कर रही है इसके लिए। यह अवसरवादी राजनीति को दर्शाता है। कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना चाहती हैं। उन्होंने सुधारों से परहेज किया है, क्योंकि उन्हें लगता है कि परंपरावादी मुल्ला उन्हें सुधार चाहने वाले प्रगतिशील मुसलमानों की तुलना में अधिक मुस्लिम वोट दिलाएंगे।
Leave a Reply