भारत को टू-फ्रंट वॉर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि दोनों देशों को जमीन पर एकसाथ संभालना मुश्किल होगा. सबसे बड़ा मुद्दा आएगा कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को रोकना. क्योंकि युद्ध के समय घुसपैठ और आतंकी गतिविधियां पाकिस्तान बढ़ा सकता है. ऐसे में भारत को अपने रिजर्व फोर्सेस का इस्तेमाल करना पड़ेगा. जैसे सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF).
इतने बड़े इलाके में यानी पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व तक अलग-अलग सेक्टर्स में सैन्य टुकड़ियों का मूवमेंट, वो भी इतनी जल्दी संभव नहीं है. यह समस्या सिर्फ थल सेना के साथ नहीं होगी. बल्कि एयरफोर्स के लिए भी समस्या होगी. इसकी वजह से सेनाओं में विभाजन हो जाएगा, जो कि भारत के लिए सही नहीं होगा. नौसेना को दो हिस्सों में बंटना होगा. एक हिस्सा अरब सागर में कराची के सामने की तरफ रहेगा. दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी में तैनात होगा. ज्यादा मात्रा में हथियारों की खपत होगी. यानी हमेशा ऐसी स्थिति के लिए भारत को अतिरिक्त हथियारों, उपकरणों, यंत्रों का भंडारण करना होगा. साथ ही समय पर उन्हें युद्धस्थल तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी होगी.
भारत की नौसेना इससे पहले टू-फ्रंट वॉर लड़ चुकी है. साल 1971 में अरब सागर में पश्चिमी पाकिस्तान से और बंगाल की खाड़ी में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से. 1971 की जंग में भारत की तीनों सेनाओं ने आपस में लयबद्धता दिखाई थी. जल, जमीन और हवा तीनों पर सामंजस्य दिखाया गया था. पाकिस्तान को धूल चटा दी थी. लेकिन जब बात चीन की आती है, तो उसके पास ज्यादा ताकत है.
चीन ने एक तरह से भारत को घेर रखा है. उसके म्यांमार-पाकिस्तान-श्रीलंका और जिबौती में पोर्ट हैं. यानी वह इन स्थानों से भारतीय नौसेना को परेशान कर सकता है. किसी भी देश की सेना कभी भी दो फ्रंट पर युद्ध के लिए नहीं सोचती है. न ही उसकी तैयारी करती है. इसमें सिर्फ एक ही चीज हो सकती है कि थियेटर कमांड के तहत तीनों सेनाएं एकसाथ हमले का जवाब दें. अगर भारत की तीनों सेनाएं एकसाथ नहीं होंगी, तो नौसेना कमजोर पड़ सकती है.
टू-फ्रंट वॉर के समय इंडियन नेवी के लिए पाकिस्तान बड़ी चुनौती नहीं होगा. लेकिन चीन हो सकता है. हालांकि चीन को भारत से समुद्र में युद्ध करने के लिए बड़ी लंबी यात्रा करके आना होगा. इसलिए नौसेना को समय मिलेगा. वह चाहे तो एयरक्राफ्ट कैरियर का इस्तेमाल करके चीन की नौसेना को रोक सकता है. या फिर एक तरफ के फ्रंट को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है, ताकि दूसरे फ्रंट से लड़ने के लिए उसे समय और पोजिशन मिल सके.
भारतीय वायुसेना पिछले कुछ सालों में काफी अपग्रेड हुई है. सुखोई-30एमकेआई पूर्वी तट से उड़ान भरकर कुछ ही मिनटों में 2500 किलोमीटर दूर पश्चिमी सेक्टर तक पहुंच सकता है. भारत के पास राफेल और अटैक हेलिकॉप्टर्स भी हैं.
इसके अलावा एयरक्राफ्ट करियर पर मौजूद फाइटर जेट्स की भी मदद मिलेगी. लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस भी तेजी से वायुसेना में शामिल किए जा रहे हैं. क्योंकि मिग-21 और मिग-27 के स्क्वॉड्रन्स को साल 2024 तक खत्म करने की योजना है.
ऐसे में फाइटर जेट्स की सही जगहों पर तैनाती ही काम आएगी. वायुसेना को 2032 तक 42 स्क्वॉड्रन्स की जरूरत है. फिलहाल 30 या 31 ही हैं. यहां भी वायुसेना तभी कुछ कर पाएगी, जब वह थल और नौसेना के साथ मिलकर प्लानिंग के तहत काम करे.
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