1980 Moradabad Riots घटना के 43 वर्षों बाद यह सच तब सार्वजनिक हुआ जब जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की 458 पन्नों की जांच रिपोर्ट मंगलवार को विधानमंडल के पटल पर रखी गई। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद यह भी साफ हुआ है कि हिंसा में कोई सरकारी कर्मचारी व हिंदू उत्तरदायी नहीं था। आयोग ने प्रकरण की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी।
मुरादाबाद में 13 अगस्त, 1980 की सुबह ईद की नमाज के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश मुस्लिम लीग के नेता डा.शमीम अहमद खां (वर्ष 1999 में दिवंगत) व उनके कुछ साथियों ने रची थी। गहरे षड्यंत्र के तहत ही हिंसा से एक दिन पूर्व मुस्लिम लीग समर्थकों की ओर से दो झूठी एफआइआर भी दर्ज कराई गई थी।
घटना के 43 वर्षों बाद यह सच तब सार्वजनिक हुआ, जब जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की 458 पन्नों की जांच रिपोर्ट मंगलवार को विधानमंडल के पटल पर रखी गई। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद यह भी साफ हुआ है कि हिंसा में कोई सरकारी अधिकारी-कर्मचारी व हिंदू उत्तरदायी नहीं था।
कहा गया है कि ....'आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ईदगाह व अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था। इन दंगों में आरएसएस या भाजपा कहीं भी सामने नहीं आई थी। यहां तक कि आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए उत्तरदायी नहीं थे।'
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