प्रवीर चंद्र भंज देव ( २५ जून १९२९ -- २५ मार्च १९६६) प्रथम ओड़िया शासक तथा बस्तर के २०वें महाराजा थे। वे जनजातीय लोगों के कल्याण के लिए संघर्ष करते रहे। १९६६ में मध्य प्रदेश की सरकार ने उन्हें मार डाला । अविभाजित मध्य प्रदेश में वे १९५७ में जगदलपुर विधान सभा से चुने गये थे। राजा प्रवीर चंद भंजदेव का ग्रामीणों से आत्मीय संबंध था, इसलिए आज भी ग्रामीण उनकी तस्वीरों को अपने घरों में मां दंतेश्वरी के साथ रखना पसंद करते हैं।
वे बस्तर के अन्तिम राजपूत काकतीय राजा थे। उनकी शिक्षा रायपुर के राजकुमार महाविद्यालय में हुई थी। २८ अक्टूबर १९३६ को उनका राज्याभिषेक हुआ था।
राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष किया। वे आजाद भारत से बहुत उम्मीद रखने वाले रौशनख्याल राजा थे। उन्हें लगता था कि आजाद भारत में आदिवासियों का शोषण अंग्रेजों की तरह नहीं होगा। वे मानते थे कि आदिवासियों को उनकी जमीन पर बहाल करना अब आसान होगा। साथ ही आदिवासियों को भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त होगा। एक तरह से वे आजादी को बस्तर के पूर्ण विकास के लिए एक बेहतरीन अवसर के रूप में देखते थे। नए रंग और देश की आजादी व रियासतों के विलय से बस्तर नरेश और काकतीय वंश के अंतिम राजा प्रवीर चंद भंजदेव बहुत आशान्वित थे।
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