Uphaar Cinema में लगी आग पर बनी सीरीज़ Trial By Fire में क्या है Truth Story ?

देश की राजधानी में सिस्टम कैसे करता रहा है, ये सीरीज इसकी भी बानगी है। बिना किसी राजनीतिक रंग के वेब सीरीज ‘ट्रायल बाई फायर’ जो हुआ है बस उसको बताती जाती है। कहानी उपहार हादसे से शुरू होकर उपहार हादसे पर आकर ही ठिठकती है।

निर्देशक जे पी दत्ता की फिल्म ‘बॉर्डर’ की रिलीज के दिन 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमाहाल में ट्रांसफार्मर से आग लगी। उस ट्रांसफार्मर से जिसमें ठीक उसी दिन सुबह भी आग लगी थी। लेकिन, इसकी मूल समस्या को ठीक करने की बजाय बिजली विभाग ने उसके फ्यूज हटाकर आपूर्ति सीधे चालू कर दी। सिनेमाघर में बेइंतहा भीड़। अतिरिक्त दर्शकों को बिठाने के लिए पहले से मंजूर बैठक व्यवस्था को बदलकर अलग से कुर्सियां लगाई गईं। आपातकालीन स्थिति में निकास की उचित व्यवस्था नहीं और बालकनी का दरवाजा स्टाफ ने बाहर से ताला लगाकर इसलिए बंद कर दिया कि उनकी गैरमौजूदगी में कोई बेटिकट शख्स हाल के भीतर न दाखिल हो जाए। सिनेमाघर में आग लगी। लोग बाहर निकल नहीं पाए। कुछ ने आग की चपेट में आकर और कुछ ने अंदर भरे धुंए से दम घुटने से दम तोड़ दिया। मरने वालों की संख्या 59 और घायल सौ के करीब। सिनेमाघर उनका है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आधी दिल्ली बसाई है।

बंद दरवाजे से शुरू हुई कहानी


मामला बड़े लोगों का है। पुलिस अपनी चिरपरिचित रफ्तार से काम करती है। दिल्ली में काम करने वाली नीलम कृष्णमूर्ति उस बच्चे से मिलने जाती है जिसे उसके दोनों बच्चों के साथ फिल्म देखने जाना था लेकिन वह भीतर नहीं जा पाया। ये बच्चा बच गया। नीलम के दोनों बच्चे मारे गए। यही बच्चा बताता है कि बालकनी का दरवाजा बाहर से बंद था। नीलम अपने पति के साथ यहीं से एक मुहिम शुरू करती है। दोनों मिलकर उपहार हादसे का शिकार हुए लोगों के परिवारों को संगठित करना शुरू करते हैं। तमाम दिक्कतें आती हैं। सूखे मेवे का एक कथित कारोबारी इस संगठन से जुड़ने वालों को अपना निशाना बना रहा है। उसे पैसा खूब मिल रहा है। वह बदमाशी भी खूब कर रहा है। फिर एक दिन शेखर इस मेवा कारोबारी के घर पहुंच जाता है। वेब सीरीज ‘ट्रायल बाई फायर’ उपहार हादसे के पीड़ितों की अगुआई करने वाली नीलम कृष्णमूर्ति और उनके पति शेखर के संघर्ष की वह दास्तां हैं जिसका उद्देश्य बदला नहीं बदलाव है।

राजधानी चलाने वाले सिस्टम का रिपोर्ट कार्ड


देश की राजधानी में सिस्टम कैसे करता रहा है, ये सीरीज इसकी भी बानगी है। बिना किसी राजनीतिक रंग के वेब सीरीज ‘ट्रायल बाई फायर’ जो हुआ है बस उसको बताती जाती है। कहानी उपहार हादसे से शुरू होकर उपहार हादसे पर आकर ही ठिठकती है। इस बीच सात एपिसोड की ये सीरीज कानून के, समाज के, पुलिस के और मीडिया के चेहरे बेनकाब करती चलती है। सब कुछ शुरू होने से पहले सीरीज ये भी बताती है कि ये कहानी काल्पनिक है लेकिन दाद देनी होगी सीरीज बनाने वालों की कि उन्होंने गोपाल बंसल और सुशील बंसल के नाम नहीं बदले। राजधानी दिल्ली में इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी प्रधानमंत्री का प्रतिक्रिया न जताना, शेरों के साथ फोटो खिंचाना, सरकारी दफ्तर से एक आम आदमी का मामले से जुड़े सारे कागजात लाकर घर पर ही तफ्तीश शुरू कर देना, इस सीरीज में सब कुछ है। सीरीज देखते हुए लगता ही नहीं कि ये 25 साल पुरानी बात है। यूं लगता है कि सब कुछ अभी हो रहा है, आंखों के सामने। और, यही इस वेब सीरीज की जीत है।

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